उत्तर प्रदेश में उत्तराधिकार संबंधी कानून
उत्तराधिकार का अर्थ होता है की किसी व्यक्ति के मृत्यु उपरांत उसकी संपत्ति पर विधिक रुप से किसका हक होगा? जो व्यक्ति विधिक रुप से उस संपत्ति को पाने का हकदार होगा, वह मृतक का उस संपत्ति के संबंध में उत्तराधिकारी कहलाएगा। उत्तर प्रदेश में कृषि भूमि के संबंध में उत्तराधिकार का निर्धारण उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 के प्रावधानों के अनुसार किया जाता है तथा कृषि भूमि से भिन्न संपत्ति के संबंध में उत्तराधिकार का निर्धारण धर्म एवं संप्रदाय के निजी कानूनों के आधार पर तय किया जाता है।
उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 के अंतर्गत कृषि भूमि के संबंध में उत्तराधिकार तय करने की अधिकारिता राजस्व न्यायालय /अधिकारियों का है तथा कृषि भूमि से भिन्न संपत्ति जिस पर व्यक्तिक कानून लागू होता है के संबंध में उत्तराधिकार तय करने की अधिकारिता सिविल कोर्ट की होती है।
हम यहां कृषि भूमि के संबंध में राजस्व संहिता के प्रावधानों के अंतर्गत उत्तराधिकार के संबंध में चर्चा करेंगे.
1.उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 108
इस धारा के अंतर्गत पुरुष भूमिधर, आसामी या सरकारी पट्टेदार के उत्तराधिकार का सामान्य क्रम तय किया गया है. इस धारा की उपधारा ( 1) के अनुसार किसी थर्ड जेंडर पुरुष भूमिधर, आसामी, सरकारी पट्टेदार की मृत्यु हो जाने पर उसकी जोत में उसके हित का न्यागमन उप धारा (2 )में विनिर्दिष्ट उसके उत्तराधिकारियों को नातेदार होने पर नीचे दिए गए सिद्धांत के अनुसार होगा:
(i) उपधारा (2 )के किसी खंड में विनिर्दिष्ट उत्तराधिकारी एक साथ समान अंश प्राप्त करेंगे;
(ii) उप धारा( 2) के किसी पूर्ववर्ती खंड में विनिर्दिष्ट उत्तराधिकारी से उत्तर वर्ती खंड में विनिर्दिष्ट समस्त उत्तराधिकारी अपवर्जित होगे, अर्थात खंड(a)में स्थित उत्तराधिकारी खंड(b) में स्थित उत्तराधिकारियो से अधिमानता प्राप्त करेंगे और खंड(b) में स्थित उत्तराधिकारी खंड(c)में स्थित उत्तराधिकारि से उत्तराधिकार में अधिमानता प्राप्त करेंगे ,आदि;
(iii)एक से अधिक विधवाएं हो तो ऐसी समस्त विधवा एक साथ समान अंश प्राप्त करेंगे;
(iv)विधवा को तभी अंश प्राप्त होगा यदि उसने पुनर्विवाह ना किया हो;
(2) उप धारा (1) के उपबन्धो के अधीन पुरुष थर्ड जेंडर भूमिधर ,आसामी,सरकारी पट्टेदार के निम्नलिखित नातेदार उत्तराधिकारी हैं अर्थात-
a.विधवा, थर्ड जेंडर पति या पत्नी, अविवाहित पुत्री ,थर्ड जेंडर संतान और पुत्र पौत्रदिक क्रम में पुंजातीय वंशज, प्रति शाखा के अनुसार :परंतु यह कि विधवा, अविवाहित पुत्री, थर्ड जेंडर संतान और पुत्र चाहे वे जितनी भी नीचे पीढ़ी में हो, को विरासत में वह अंश मिलेगा जो पूर्व मृत्यु पुत्र को यदि वह जीवित होता अंश प्राप्त होता;
b.माता और पिता
c.विवाहित पुत्री
d.भाई ,अविवाहित बहन ,थर्ड जेंडर भाई या बहन जो क्रमशः उसी मृत पिता के पुत्र और पुत्री थर्ड जेंडर संतान हो और पूर्व मृत भाई का पुत्र ,अविवाहित पुत्री ,थर्ड जेंडर संतान जब पूर्व मृत भाई उसी मृत पिता का पुत्र हो;
e.पुत्र की पुत्री और थर्ड जेंडर संतान;
f.पिता की माता और पिता के पिता;
g.पुत्री का पुत्र ,थर्ड जेंडर संतान और अविवाहित पुत्री;
h.विवाहित बहन;
i.सौतेली बहन जो उसी मृत पिता की पुत्री हो;
j.बहन का पुत्र ,थर्ड जेंडर संतान और अविवाहित पुत्री;
k.सौतेली बहन का पुत्र ,थर्ड जेंडर संतान और अविवाहित पुत्री जहां बहन उसी मृत पिता की पुत्री हो;
l भाई.के पुत्र का पुत्र ,थर्ड जेंडर संतान और अविवाहित पुत्री;
m.पिता के पिता का पुत्र, थर्ड जेंडर सुल्तान और अविवाहित पुत्री;
n.पिता के पिता के पुत्र का पुत्र, थर्ड जेंडर संतान और अविवाहित पुत्री
o.माता की माता का पुत्र, थर्ड जेंडर संतान और अविवाहित पुत्री
2.प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 109
इस धारा के अंतर्गत ऐसी महिला जो उत्तराधिकार में किसी पुरुष से भूमि प्राप्त करती है एवं उनकी मृत्यु हो जाती है तो उस मृतक महिला के संबंध में उत्तराधिकार को स्पष्ट किया गया है. इस धारा के अंतर्गत यदि उत्तराधिकार में अथवा विरासत में भूमि प्राप्त करने वाली स्त्री की मृत्यु हो जाए ,वह विवाह कर ले या पुनर्विवाह कर ले वहां जोत में उसका हिस्सा अंतिम पुरुष थर्ड जेंडर भूमिधर ,आसामी या सरकारी पट्टेदार जैसी स्थिति हो के निकटतम जीवित वारिस को न्यागत हो जाता है .”निकटतम जीवित वारिस “का तात्पर्य धारा 108 में उल्लिखित वरासत क्रम से है.
परंतु पुत्री के रूप में वरासत प्राप्त करने वाली स्त्री की मृत्यु हो जाती है तो उसके हित का धारा 110 के खंड (a) में उल्लिखित वारिसो को न्यागत होता है.
3.उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 110
इस धारा के अंतर्गत किसी महिला की मृत्यु होने परउनकी निजी भूमि के संबंध में उत्तराधिकार को निर्धारित किया गया है.
a.पुत्र ,थर्ड जेंडर संतान ,अविवाहित पुत्री, पुत्र का पुत्र, थर्ड जेंडर संतान और अविवाहित पुत्री, पुत्र के पुत्र का पुत्र ,थर्ड जेंडर संतान और अविवाहित पुत्री, पूर्व मृत पुत्र की विधवा और पूर्व मृत पुत्र के पूर्व मृत पुत्र की विधवा, प्रति शाखा के अनुसार समान अंशों में: परंतु प्रथम शाखा उसी शाखा का निकटतर दूरतर को वर्जित कर देगा :परंतु द्वितीय यह कि कोई विधवा , जिसने पुनर्विवाह कर लिया है ,अपवर्जित हो जाएगा;
b.पति या विवाहित थर्ड जेंडर पति या पत्नी;
c.विवाहित पुत्री;
d.पुत्री का पुत्र, थर्ड जेंडर संतान और अविवाहित पुत्री;
e.पिता;
f.विधवा माता;
g.भाई जो उसी मृत पिता का पुत्र हो यह थर्ड जेंडर संतान सहोदर भाई या बहन हो जो उसी मृत पिता की संतान हो, और भाई का पुत्र, थर्ड जेंडर संतान और अविवाहित पुत्री प्रति शाखा अनुसार;
h.अविवाहित बहन;
i.विवाहित बहन
j.बहन का पुत्र, थर्ड जेंडर संतान और अविवाहित पुत्री
उत्तर प्रदेश में कृषि भूमि के संबंध में उपरोक्त विधि व्यवस्था जिसके अंतर्गत उत्तराधिकार तय किया जाता है की कार्यवाही को वरासत की कार्यवाही कहते हैं. उपरोक्त कानून के अतिरिक्त कोई भूमिधर यदि अपने जीवन काल में पंजीकृत वसीयत लिखता है तो उपरोक्त धारा में जो वरासत का क्रम बताया गया है को अप वर्जित करते हुए वसीयत के आधार पर उत्तराधिकार तय किया जा सकता है.
वरासत की कार्रवाई के संबंध में क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है?
यदि किसी व्यक्ति का नाम खतौनी में दर्ज है तथा उसकी मृत्यु हो गई है तो उसके वारिसान वरासत की कार्रवाई ऑनलाइन माध्यम से कर सकते हैं. इसके लिए उन्हें किसी भी नजदीकी सहज जन सेवा केंद्र से निर्धारित शुल्क देकर ऑनलाइन आवेदन करना होता है. ऑनलाइन आवेदन के उपरांत उन्हें मृतक खातेदार के मृत्यु प्रमाण पत्र एवं मृतक से स्वयं का संबंध दर्शाने वाला अभिलेख लेखपाल को प्रस्तुत करना होता है.
लेखपाल तथ्यात्मक जांच करने के उपरांत ऑनलाइन पोर्टल से अपनी आख्या राजस्व निरीक्षक पोर्टल पर प्रेषित करते हैं राजस्व निरीक्षक स्थलीय एवं अभिलेख जांच कर आवेदन सही पाए जाने की स्थिति में वरासत का आदेश पारित करते हैं तथा पारित आदेश का परवाना राजस्व निरीक्षक (कार्यालय )को प्राप्त कराते हैं .राजस्व निरीक्षक (कार्यालय )परवाने के आधार पर रजिस्टर में आदेश दर्ज कर ऑनलाइन खतौनी में भी आदेश दर्ज कराते हैं.
वरासत विवादित होने की स्थिति में प्रक्रिया?
यदि कोई व्यक्ति मृतक खातेदार के वरासत का दावा करता है तथा राजस्व निरीक्षक द्वारा पारित आदेश से संतुष्ट नहीं है तो वह तहसीलदार न्यायालय में राजस्व निरक्षक के आदेश के विरुद्ध वाद दाखिल कर सकता है इसके अतिरिक्त यदि जांच के दौरान राजस्व निरीक्षक यह पाता है कि वरासत का दावा विवादित है अर्थात जो आवेदन उन्हें प्राप्त हुआ है
उनके द्वारा यह तय कर पाना संभव नहीं है कि मृतक के सही वारिसान कौन है तो ऐसी स्थिति में वह ऑनलाइन माध्यम से ही न्यायालय तहसीलदार को वाद प्रेषित कर सकता है, दोनों स्थिति में जब तहसीलदार न्यायालय में वाद दाखिल होता है तो तहसीलदार न्यायालय द्वारा सभी संबंधित पक्षों को नोटिस के माध्यम से सूचित करने के उपरांत तथ्यात्मक जांच कर वरासत का आदेश पारित किया जाता है .
तहसीलदार न्यायालय द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध अपील उप जिलाधिकारी न्यायालय में की जाती है. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि तहसीलदार न्यायालय द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध अपील दाखिल ना कर कमिश्नर न्यायालय या बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के न्यायालय में निगरानी भी दाखिल की जा सकती है .
वसीयत के आधार पर यदि वरासत का दावा किया जाता है तो तहसीलदार न्यायालय में मुकदमा पंजीकृत की जाती है .तहसीलदार वसीयत का परीक्षण कराता है .यदि वसीयत के परीक्षण उपरांत वसीयत साबित कर दी जाती है तो धारा 108 109 वह 110 में दी गई उत्तराधिकार क्रम को दरकिनार कर वरासत आदेश पारित किया जा सकता है.
विदेशी नागरिकों के पक्ष में उत्तराधिकार
राजस्व संहिता की धारा 113 में यह स्पष्ट किया गया है कि भारतीय नागरिक तथा भारतीय नागरिक जिसने विदेशी नागरिकता प्राप्त कर ली है को छोड़कर अन्य कोई भी व्यक्ति वसीयत अथवा वरासत के आधार पर कृषि भूमि में उत्तराधिकार का दावा नहीं कर सकेगा, लेकिन यदि संहिता की धारा 90 के अंतर्गत कोई विदेशी नागरिक राज्य सरकार की लिखित पूर्व अनुमति से उत्तर प्रदेश में भूमि खरीदता है तो ऐसे क्रेता की मृत्यु उपरांत उसके वारिसान जोकि विदेशी नागरिक हो सकते हैं उत्तराधिकार का दावा कर सकते हैं.
उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 114 के विशेष प्रावधान
a.यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु के समय कोई बच्चा उसकी पत्नी के गर्भ में था तो बच्चे के जीवित पैदा होने पर बच्चा उत्तराधिकार के आधार पर भूमि में हित प्राप्त करेगा;
b.यदि दो व्यक्तियों की मृत्यु ऐसी परिस्थिति में हुई हो जिससे यह निश्चित ना हो पा रही हो की उनमें से किसकी मृत्यु हुई है यदि मृत्यु हुई है तो कौन दूसरे के बाद जीवित बचा है ?तब किसी जोत में हित के न्यगमन के प्रयोजन के लिए यह अवधारणा की जाएगी कि जब तक अन्यथा सिद्ध ना हो जाए ,छोटा बड़े के बाद जीवित बचा है;
c.कोई व्यक्ति जो किसी भूमिधर, आसामी या सरकारी पट्टेदार की हत्या कर देता है या ऐसी हत्या किए जाने के लिए दुष्प्रेरित करता है तो वह किसी जोत में मृतक के हित को उत्तराधिकार में प्राप्त करने के लिए अयोग्य हो जाता है .यहां हत्या का तात्पर्य किसी ऐसे अपराध से है जो भारतीय दंड संहिता की धारा 302 ,304, 304(b),305 तथा धारा 306 के अधीन दंडनीय है.
निष्कर्ष
ऐसा माना जाता है कि संपत्ति का विवाद सभी विवादों के मूल में होता है. उत्तर प्रदेश जो कि एक कृषि प्रधान राज्य है एवं राज्य की लगभग आधी से अधिक जनसंख्या कृषि कार्य से संलग्न है कृषि भूमि उत्तराधिकार के माध्यम से अगली पीढ़ी को ट्रांसफर की जाती है. ऐसी स्थिति में उत्तराधिकार संबंधी कानून का स्पष्ट होना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है. राज्य की विधायिका ने इसी तथ्य को संज्ञान में रखते हुए कृषि भूमि से संबंधित उत्तराधिकार क्रम को व्यवस्थित बनाया है .
उत्तराधिकार में प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारीयों में ना सिर्फ विधवा बल्कि अविवाहित पुत्रियो तथा थर्ड जेंडर संतान को भी अधिकार दिया है .विधायिका की यह अत्यंत ही प्रगतिशील कदम है .इसके अतिरिक्त दूरसंचार क्रांति का अधिकतम प्रयोग करते हुए वरासत संबंधी आवेदन ऑनलाइन किया गया है जिससे ना सिर्फ लोगों के समय की बचत हो रही है बल्कि पारदर्शिता को बढ़ावा मिला है भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा है.
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