राजगामी संपत्ति (Escheat)

राजगामी संपत्ति


राजगामी संपत्ति (Escheat) किसे कहते हैं?

ऐसी संपत्ति, जिसके स्वामी की मृत्यु के बाद संपत्ति को सरकार के स्वामित्व में निहित कर दी जाती है ,वह संपत्ति राजगामी संपत्ति (Escheat) कहलाती है. राजगामी संपत्ति उस दशा में सरकार में निहित होती है जब उसके मूल स्वामी का कोई विधिक उत्तराधिकारी नहीं होता है. यदि संपत्ति राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में होती है तो राज्य सरकार में निहित मानी जाती है एवं अन्य दशा में केंद्र सरकार में निहित मानी जाएगी.

राजगामी संपत्ति के संबंध में कानूनी प्रावधान क्या है?

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 115 एवं उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता नियमावली के नियम 105 में किसी संपत्ति को राजगामी संपत्ति घोषित किए जाने का कानूनी प्रावधान व प्रक्रिया निर्धारित की गई है.

यदि कोई भूमिधर अथवा ग्राम पंचायत का आसामी विधिक वारिस छोड़े बिना मर जाता है तो उप जिलाधिकारी मृतक की भूमि पर कब्जा कर लेगा तथा एक कृषि वर्ष के लिए भूमि को नीलामी द्वारा पट्टे पर उठा देगा. नीलामी में सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को बोली की 25% धनराशि तत्काल जमा करनी होगी तथा शेष धनराशि 1 सप्ताह के अंदर जमा करनी होगी.

यदि नीलाम क्रेता द्वारा अवशेष धनराशि 1 सप्ताह के अंदर जमा नहीं की जाती है तो पुनः नीलामी कराई जाएंगी और 25% धनराशि राज्य सरकार के पक्ष में जब्त कर ली जाएगी .यदि अवशेष धनराशि जमा कर दी जाती है तो नीलाम क्रेता अगले 30 जून की अवधि की समाप्ति तक उस भूमि पर खेती का कार्य कर सकता है. अगले कृषि वर्ष के लिए पुनः नीलामी की कार्यवाही कराई जाएगी.

यदि मृतक की भूमि पर कब्जा प्राप्त करने के 3 वर्ष के भीतर कोई उत्तराधिकार का दावा कर भूमि वापस दिलाने हेतु उपजिलाधिकारी के समक्ष आवेदन प्रस्तुत करता है तो उप जिलाधिकारी जांच उपरांत आवेदक के दावे को स्वीकार अथवा अस्वीकार कर सकता है. यदि आवेदक का दावा अस्वीकार किया जाता है तो वह 1 वर्ष की समयावधि में उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 144 के अंतर्गत घोषणात्मक वाद(declaration suit) दाखिल कर सकता है.

यदि 3 वर्ष की अवधि के भीतर कोई दावा प्रस्तुत नहीं होता है अथवा आवेदक का दावा अस्वीकार किए जाने के बावजूद उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 144 के अंतर्गत घोषणात्मक वाद दाखिल नहीं किया जाता है अथवा घोषणात्मक वाद न्यायालय उप जिलाधिकारी द्वारा खारिज कर दिया जाता है तो प्रश्नगत भूमि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 59 के अधीन ग्राम पंचायत या स्थानीय प्राधिकरण में निहित समझी जाएगी.

यदि आवेदक घोषणात्मक बाद में डिक्री हासिल कर लेता है तो तत्समय प्रदत्त किसी विधि में किसी बात के होते हुए भी ऐसी भूमि पर अध्यासन और उसके संबंध में देय भू राजस्व की समस्त बकाया, उसके प्रबंध का व्यय काटने के पश्चात पट्टेदार से वसूल किए गए लगान पाने का हकदार होगा.

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 115 की विसंगतियां:

1…उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 115 कृषि भूमि का राजगामी संपत्ति के रूप में सरकार में निहित होने का विधिक प्रावधान निर्धारित करती है. परंतु, संभव है कि मृतक के पास कृषि भूमि के अतिरिक्त भी चल अचल संपत्ति हो सकती है जिसके बारे में क्या कार्रवाई विधिक रूप से संभव है ,यह स्पष्ट नहीं किया गया है.

2…आसामी पट्टा की अधिकतम समयावधि 5 वर्ष की होती है .5 वर्ष की समयावधि पूर्ण होने के पश्चात आसामी पट्टा स्वतः निरस्त माना जाता है एवं यदि 5 वर्ष के पश्चात भी वह पट्टे की भूमि पर काबिज रहता है तो उसे ग्राम पंचायत बेदखल कर सकती है .धारा 115 में आसामी की भूमि को भी राजगामी संपत्ति के रूप में निहित करने का प्रावधान किया गया है परंतु यह स्पष्ट नहीं किया गया है की पट्टा की अवधि समाप्त होने के पश्चात भी उपरोक्त प्रावधान लागू किए जाएंगे कि नहीं ?इसे स्पष्ट किया जाना आवश्यक प्रतीत होता है.









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