वसीयत : क्यों है संपत्ति वितरण में पारदर्शिता की गारंटी?

वसीयत


वसीयत / इच्छापत्र (will) किसे कहते हैं?

Indian succession act 1925 की धारा (2) (ज) के अनुसार वसीयत एक विधिक उद् घोषणा है जिसके माध्यम से वसीयतकर्ता (वसीयत लिखने वाला)यह इच्छा व्यक्त करता है कि उसकी मृत्यु के पश्चात उसकी संपत्ति किसे प्राप्त हो. वसीयतकर्ता का स्वस्थ चित होना वसीयत निष्पादन के समय आवश्यक है.

वसीयत के आधार पर उत्तराधिकार का दावा वसीयतकर्ता की मृत्यु के पश्चात की जाती है. वसीयत स्थाई दस्तावेज नहीं है बल्कि खंडनीय(जो खंडित हो सकता) है. वसीयतकर्ता अपने जीवन काल में कई वसीयत लिख सकता है ,जो वसीयत अंतिम होगा वही विधिक रुप से मान्य होगा. वसीयत बनाने के लिए किसी भी तरह की स्टांप ड्यूटी या स्टांप पेपर की आवश्यकता नहीं होती है. अगर कोई व्यक्ति आधिकारिक तौर पर वसीयत बनाना चाहता है तो वह ₹100 के स्टांप पेपर पर इसे बना सकता है

वसीयत के मुख्य तत्व क्या -क्या है?

वसीयत के मुख्यता चार तत्व हैं:प्रथम ; वसीयत लिखित हो, दूसरा;वसीयत दो गवाहों से अनु प्रमाणित (साबित)हो ,तीसरा; दोनों गवाहों ने वसीयत का निष्पादन देखा हो ,चौथा ;दोनों गवाह ने वसीयतकर्ता की मौजूदगी में वसीयत पर हस्ताक्षर किया हो.

वसीयत अनरजिस्टर्ड या रजिस्टर्ड हो सकता है परंतु ,उत्तर प्रदेश राज्य में दिनांक 23 अगस्त 2004 से वसीयत का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है .कुछ राज्यों में अभी भी अनरजिस्टर्ड वसीयत मान्य है.

दस्तावेज के तौर पर वसीयतकर्ता और गवाहों की फोटो और पहचान पत्र आवश्यक होता है. पंजीकरण के बाद यह वसीयत कानूनी प्रमाण माना जाता है.

वसीयत को सिद्ध करने का क्या तरीका है?

भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 68 के प्रावधानों के अनुसार वसीयत का सिद्ध किया जाना आवश्यक होता है .वसीयत के दो गवाह में से कम से कम एक गवाह द्वारा वसीयत सिद्ध किया जाता है . यदि गवाह वसीयत को सिद्ध करने में असफल रहता है तो वसीयत के आधार पर उत्तराधिकार तय किया जाना संभव नहीं हो पाता है.

उत्तर प्रदेश में वसीयत के संबंध में कानूनी प्रावधान

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 107 द्वारा संक्रमणीय अधिकार वाले भूमिधर के जोत में हित का न्यागमन वसीयत के माध्यम से किए जाने की व्यवस्था की गई है परंतु ,इस धारा में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के भूमिधर पर वसीयत के अधिकार पर निर्बंधन लगाया गया है. अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के भूमिधर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति यथास्थिति ,के पक्ष में ही वसीयत कर सकते हैं.

यदि अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति के भूमिधर यथास्थिति, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से भिन्न व्यक्ति के पक्ष में वसीयत करना चाहते हैं तो इसके लिए कलेक्टर के परमिशन की आवश्यकता होती है. इसके अतिरिक्त असंक्रमणीय अधिकार (non-transferable rights) वाले भूमिधर तथा आसामी (छोटी अवधि के आवंटी) को वसीयत का अधिकार नहीं दिया गया है.

कृषि भूमि के संबंध में निष्पादित वसीयत दिनांक 23 अगस्त 2004 से पंजीकृत किया जाना अनिवार्य कर दिया गया है परंतु मकान अथवा शहरी संपत्तियों के वसीयत की रजिस्ट्री आवश्यक नहीं है.

उत्तर प्रदेश में वसीयत के आधार पर उत्तराधिकार का दावा करने की प्रक्रिया?

वसीयत के आधार पर उत्तराधिकार का दावा करने वाला व्यक्ति क्षेत्रीय राजस्व निरीक्षक के समक्ष निर्धारित प्रपत्र 9 पर आवेदन प्रस्तुत करता है. राजस्व निरीक्षक जांच करके अपनी रिपोर्ट तहसीलदार को प्रस्तुत करता है. राजस्व निरीक्षक की जांच आख्या प्राप्त होने पर तहसीलदार द्वारा वाद दर्ज कर वसीयत का परीक्षण साक्षी के माध्यम से करवाता है.

यदि साक्षी द्वारा वसीयत को सिद्ध कर दिया जाता है तो तहसीलदार द्वारा नामांतरण आदेश पारित किया जाता है. न्यायालय तहसीलदार को यह देखना होता है की वसीयत गवाह द्वारा सिद्ध है तथा संदेह से परे है. यदि वसीयत सिद्ध नहीं हो पाता है या फिर संदेहात्मक परिस्थितियों से घिरा होता है तो ऐसी स्थिति में वसीयत को अस्वीकार कर धारा 108 अथवा 110 जैसी स्थिति हो ,के अनुसार उत्तराधिकार तय किया जाता है.

वसीयत के सामान्य नियम:

  1. वसीयत के आधार पर किसी भूमि पर कब्जा प्राप्त करने वाले व्यक्ति द्वारा प्रत्येक रिपोर्ट r c प्रपत्र 9 पर दी जाएगी.

2. वसीयत के आधार पर नामांतरण प्रार्थना पत्र /रिपोर्ट में मृतक को प्रतिपक्षी के रूप में पक्षकार नहीं बनाया जाता है बल्कि धारा 108 के खंड (क) अथवा धारा 110 जैसी स्थिति हो, के वारिस को प्रतिपक्षी के रूप में पक्षकार बनाया जाता है.

3. प्रत्येक ग्राम के लिए पृथक रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है और यदि भूमि एक से अधिक तहसील के अंतर्गत हो तो कलेक्टर विनिश्चय कर किसी एक तहसील में सारे वादों को ट्रांसफर करते हैं.

4. यदि उत्तराधिकार द्वारा कब्जा प्राप्त करने वाला व्यक्ति अवयस्क है तो ऐसी रिपोर्ट उसके संरक्षक अथवा वाद मित्र द्वारा प्रस्तुत की जा की सकेगी.

5. यदि उत्तराधिकार द्वारा एक से अधिक व्यक्ति संयुक्त रूप से किसी भूमि पर कब्जा प्राप्त करते हैं तब उनमें से किसी भी एक के द्वारा दी गई रिपोर्ट को पर्याप्त माना जाएगा.

6. भारतीय नागरिक तथा भारतीय मूल का व्यक्ति जिसने अन्य देश की नागरिकता प्राप्त कर ली हो, से भिन्न व्यक्ति ,वसीयत के माध्यम से उत्तर प्रदेश में कृषि भूमि या उसके किसी हित का अर्जन नहीं कर सकता है .

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