उत्तर प्रदेश में वृक्षों के स्वामित्व /अधिकार का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 56 में वृक्षों के स्वामित्व के संबंध में निम्नलिखित व्यवस्था दी गई है:
- किसी जोत भूमि या बाग में समस्त वृक्ष ऐसे व्यक्ति का समझा जाता है जो ऐसे जोत भूमि या बाग का स्वामी है.
- यदि वृक्ष दो जोत भूमि की सीमा पर विद्यमान है तो ऐसा वृक्ष संयुक्त स्वामित्व में माना जाएगा.
- यदि वृक्ष आबादी अथवा unoccupied भूमि में स्थित है एवं किसी व्यक्ति के स्वामित्व में है जो इस संहिता के लागू होने के तत्काल पूर्व उसका मालिक स्वामी था तो ऐसा वृक्ष उस व्यक्ति के स्वामित्व में ही माना जाएगा.
- उपरोक्त के अतिरिक्त अन्य सभी वृक्ष, झाड़ ,जंगल या अन्य प्राकृतिक उत्पाद जहां कहीं भी हो या रोपित किए गए हो, को इस संहिता के प्रारंभ होने की दिनांक से राज्य सरकार की संपत्ति समझा जाएगा.
उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक भूमि पर वृक्ष कैसे लगाया जा सकता है?
- उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 57 तथा उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता नियमावली 2016 के नियम 46 में यह व्यवस्था दी गई है कि कोई व्यक्ति जो किसी सार्वजनिक सड़क, मार्ग या नहर के किनारे एक या एक से अधिक फलदार वृक्ष लगाना चाहता है तो वह कलेक्टर अथवा नियम 48 में उल्लिखित सक्षम प्राधिकारी के समक्ष आर सी प्रपत्र 14 में आवेदन कर सकता है. सक्षम प्राधिकारी का तात्पर्य प्रभागीय वन अधिकारी (वन ),अधिशासी अभियंता (लोक निर्माण विभाग ),अधिशासी अभियंता( सिंचाई) अथवा तहसीलदार( राजस्व) से है, जिनके क्षेत्राधिकार के अंतर्गत प्रस्तावित वृक्षारोपण की भूमि अवस्थित है.
- आवेदन प्राप्त होने पर संबंधित अधिकारी वृक्ष लगाए जाने की suitability एवं genuineness की जांच करेंगे तथा आवेदन को स्वीकार अथवा अस्वीकार करेंगे. यदि आवेदन स्वीकार किया जाता है तो निम्नलिखित तथ्यों का उल्लेख करते हुए परमिशन जारी किया जाएगा:
आवेदक का नाम, पिता का नाम तथा पता
प्रस्तावित वृक्षों की संख्या एवं उनकी किस्म
वृक्षों की अवस्थिति एवं क्षेत्रफल
वृक्षारोपण पूरा करने की समय अवधि
वृक्षारोपण आदेश निर्गत होने के 1 माह के भीतर पूर्ण किया जाएगा तथा सक्षम अधिकारी को सूचित किया जाएगा. यदि वृक्षारोपण करने वाला व्यक्ति सूचना निर्धारित समय के भीतर प्रेषित नहीं करता है तो सक्षम अधिकारी संबंधित को 15 दिनों की सुनवाई का अवसर देकर समय सीमा में वृद्धि कर सकते हैं अथवा वृक्षारोपण की परमिशन को निरस्त कर सकते हैं.
- यदि एक ही स्थल पर वृक्षारोपण के लिए एक से अधिक व्यक्तियों का आवेदन प्राप्त होता है तो उसमें वरीयता क्रम धारा 126 के अनुसार तय किया जाएगा. किंतु किसी आवेदक का घर अथवा भूमि समीप में स्थित हो तो उसे प्राथमिकता दी जाएगी.
वृक्षारोपण हेतु फलदार वृक्ष से क्या आशय है?
उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता नियमावली 2016 के नियम 47 के अनुसार फलदार वृक्ष से तात्पर्य निम्न वृक्षों से है:
आम
आंवला
कटहल
लीची
इमली
जामुन
महुआ
बेल
कैथा
अमरूद.
कोई व्यक्ति जो नियमानुसार वृक्षारोपण की परमिशन प्राप्त करता है तो उसके वृक्षों के बाबत क्या अधिकार हैं?
ऐसा व्यक्ति और उसके विधिक प्रतिनिधि बिना किसी भुगतान के उस वृक्ष के फलों का लाभ उठाने के अधिकारी होंगे. परंतु ऐसे वृक्ष तथा उसके नीचे की भूमि का स्वामित्व सरकार के पास रहेगा.
वृक्षारोपण करने वाले व्यक्ति के अधिकार वंशानुगत होंगे ,परंतु वृक्ष तथा भूमि पर कोई अधिकार नहीं होगा.
यदि वृक्ष के स्वामित्व से संबंधित विवाद उत्पन्न होता है तो निस्तारण की क्या प्रक्रिया है?
वृक्ष के स्वामित्व के संबंध में विवाद की स्थिति में कलेक्टर के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया जाएगा. आवेदन में आवेदक का नाम, पिता का नाम, पूरा पता, संपत्ति का विवरण, विवाद की प्रकृति तथा उस व्यक्ति का नाम व पता जो विवाद कर रहा है लिखित रहेगा. कलेक्टर द्वारा विवाद का निस्तारण किया जाएगा.
कलेक्टर के आदेश के विरुद्ध मंडलायुक्त के समक्ष 30 दिनों के भीतर अपील दायर की जा सकती है मंडलायुक्त के आदेश के खिलाफ द्वितीय अपील की व्यवस्था नहीं है परंतु राजस्व संहिता की धारा 210 के अधीन राजस्व परिषद के समक्ष निगरानी दाखिल की जा सकती है. कलेक्टर एवं मंडलायुक्त के आदेश से क्षुब्ध व्यक्ति अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए न्यायालय में रिट भी दाखिल कर सकते हैं.