कृषि भूमि का गैर कृषि भूमि में परिवर्तन (उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 80)

कृषि भूमि का गैर कृषि भूमि में परिवर्तन (उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 80)


कृषि भूमि का गैर कृषि भूमि में परिवर्तन किन आधारों पर किया जाता है?

कृषि भूमि का गैर कृषि भूमि में परिवर्तन दो आधारों पर किया जाता है-

(1) जब भूमि का उपयोग पूर्व से कृषि कार्य में न कर औद्योगिक, वाणिज्यिक या आवासीय प्रयोजन के लिए किया जा रहा है:

जहां संक्रमणीय अधिकारों वाला कोई भूमिधर जोत या उसके आंशिक भाग का उपयोग औद्योगिक , वाणिज्यिक या आवासीय प्रयोजन केलिए कर रहा है वहां उप जिलाधिकारी स्वप्रेरणा से या ऐसे भूमिधर द्वारा आवेदन किए जाने पर विहित जांच करने के पश्चात 45 कार्य दिवसों के भीतर कृषि भूमि को गैर कृषि भूमि प्रयोजन हेतु घोषणा कर सकता है. उप जिलाधिकारी यदि आवेदन अस्वीकृत कर देता है तो अस्वीकृति का कारण उल्लिखित करना होगा.यदि आवेदक आवेदन के साथ निर्धारित शुल्क के साथ सभी सहखतेदारों की अनापत्ति संलग्न करता है एवं उप जिलाधिकारी 45 कार्यदिवस के भीतर घोषणा नहीं कर पाता है तो ऐसी घोषणा की गई समझी जाएगी और तहसीलदार “उपजिलाधिकारी के आदेश अध्यधीन” टिप्पणी सहित राजस्व अभिलेख में अंकित करेगा.धारा80(1)

(2)यदि कृषि भूमिका उपयोग औद्योगिक ,वाणिज्यिक या आवासीय प्रयोजन के लिए न कर कृषि भूमि के रूप में ही किया जा रहा है:

उक्त स्थिति में यदि संक्रमणीय अधिकारों वाला कोई भूमिधर अपनी जोत या उसके आंशिक भाग का भविष्य में औद्योगिक, वाणिज्यिक या आवासीय प्रयोजन के लिए उपयोग करने का आवेदन उप जिलाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करता है तो ऐसे आवेदन प्राप्त होने पर जांचोंप्रांत उपजिलाधिकारी 45 कार्यदिवस के भीतर गैर कृषि प्रयोजन की घोषणा कर सकता है या आवेदन को अस्वीकृत कर सकता है .आवेदन अस्वीकृत करने की दशा में अस्वीकृति का कारण उल्लिखित करना होगा. यदि उप जिलाधिकारी द्वारा आवेदन को स्वीकृत किया जाता है तो घोषणा केदिनांक से 5 वर्ष की अवधि के भीतर प्रस्तावित गैर कृषि संबंधी गतविधि प्रारंभ न करने की दशा ऐसी घोषणा व्यपगत हो जाएगी यदि और यदि भूमिधर द्वारा 5 वर्ष की अवधि के भीतर प्रस्तावित गैरकृषि कार्य या गतिविधि कर ली जाती है तो धारा 80(1) के अंतर्गत पुनः आवेदन प्रस्तुत कर गैर कृषि घोषित कराना अनिवार्य होगा. इस उप धारा के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत करने के पूर्व प्रश्नगत भूमि के चारों तरफ ईंट की पक्की चारदिवारी का निर्माण किया जाना आवश्यक है. इस उप धारा के अधीन घोषणा भू उपयोग परिवर्तन की श्रेणी में नहीं मानी जाती और भूमि निरंतर कृषि भूमि के रूप में ही समझी जाती है .तथापि संबंधित भूमिधर उक्त भूमि पर प्रस्तावित गतिविधि अथवा परियोजना के लिए ऋण और अन्य आवश्यक अनुज्ञाएं (permission), समाशोधन (clearance)आदि प्राप्त करने का हकदार होता है .यदि भूमिधर द्वारा उप धारा (1) केअंतर्गत आवेदन प्रस्तुत करता है तो आवेदन का विनिश्चय उपजिलाधिकारी द्वारा 15 दिनों के अंदर किया जाना आवश्यक होगा.धारा80(2)

धारा 80 से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण बिंदु:

  • यदि भूमि का विधिक बंटवारा नहीं हुआ है तो किसी सह भूमिधर द्वारा घोषणा हेतु दिया गया आवेदन पोषणीय नहीं होगा जब तक सभी भूमिधर द्वारा संयुक्त आवेदन नहीं किया जाता है.
  • यदि भूमि का बंटवारा नहीं हुआ है और कोई खातेदार अपने अंश की घोषणा हेतु आवेदन करता है तो ऐसा आवेदन भी पोषणीय नहीं होगा जब तक उक्त भूमि का विधि के उपबंधो के अनुसार बटवारा नहीं हो जाता है.
  • यदि भूमि या उसका आंशिक भाग किसी नगरी या औद्योगिक विकास प्राधिकरण के अधीन अधिसूचित क्षेत्र के अंतर्गत आताहै तो संबंधित विकास प्राधिकरण की पूर्व अनुज्ञा लिया जाना आवश्यक होगा.
  • यदि आवेदन जोत के किसी आंशिक भाग के संबंध में किया जाता है वहां उप जिलाधिकारी विहित रीति से ऐसे आंशिक भाग का सीमांकन कर सकता है सीमांकन विद्यमान सर्वे मानचित्र के आधारपर किया जाएगा.
  • रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 के अंतर्गत ऐसी घोषणा को पंजीकृत करना जरूरी नहीं होगा परंतु उसे अधिकार अभिलेख ( खतौनी )में दर्ज करना होगा.

कृषि भूमि को गैरकृषि भूमि में परिवर्तन करने हेतु प्रस्तुत आवेदन उप जिलाधिकारी निम्नलिखित आधारों पर खारिज कर सकता है:

यदि भूमि या उसके आंशिक भाग का उपयोग , ऐसे प्रयोजन के लिए किया रहा है या किया जाना प्रस्तावित है जिसके कारण लोक उपताप (public nuisance) या लोक व्यवस्था (public order), लोक स्वास्थ्य, सुरक्षा या सुविधा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना संभावित हो या जो महायोजनामें प्रस्तावित उपयोगो के विरुद्ध हो , तो उपजिलाधिकारी द्वारा आवेदन खारिज कर दिया जायेगा.

किसी कृषि भूमि को गैर किसीभूमि में परिवर्तित कराने हेतु प्रस्तुत आवेदन के साथ देय शुल्क

उत्तरप्रदेश राजस्व संहिता नियमावली के नियम 85 (2) के अनुसार सर्किल रेट के अनुसार भूमि के आगणित मूल्य का 1% उदघोषणा शुल्क तथा नियमावली के नियम 191 के अतर्गत 1% न्यायालय शुल्क लिए जाने की व्यवस्था थी. वर्ष 2023 के संशोधन आदेश द्वारा न्यायालय शुल्क की धनराशि₹50 कर दिया गया है .यदि आवेदक आवासीय प्रयोजनहेतु आवेदन करता है तो उदघोषणा शुल्क देय नहीं है.

(1) जिन इकाईयो द्वारा पर्यटन विभाग से परियोजना हेतु पजीकत कराया गया है, उन इकाईयो को उघोषणा शुल्क से छूट मिलेगी.

(2) उन्हे उघोषणा हेतु न्यायालय शुल्क 50 भी नही देनी होगी.

कृषि भूमि को गैरकृषि भूमि में परिवर्तन हेतु धारा 80 केअंतर्गत आवेदन प्रस्तुत करने की प्रक्रिया

आवेदक सहज जन सेवा केंद्र अथवा स्वयं द्वारा ऑनलाइन माध्यम से राजस्व परिषद की वेबसाइट पर आवेदन कर सकता है. आवेदन करने के साथ निम्नलिखित दस्तावेजों को ऑनलाइन अपलोड भी किया जाना आवश्यकहै

  • संबंधित भूमि का खसरा
  • संबंधित भूमि की खतौनी
  • संबंधित भमि या उसके आंशिक भाग जिसको गैरकृषि घोषित कराई जानी है का नजरी नक्शा
  • सभी सहखतेदारों का अनापत्ति प्रमाणपत्र

आवेदक ऑनलाइन आवेदन करने के साथ-साथ निर्धारितशुल्क भी ऑनलाइन माध्यम से जमा कर सकता है यद्यपि शुल्क बादमें भी उप जिलाधिकारी न्यायालय में जमा किया जा सकता है.

कृषि भूमि को गैरकृषि भूमि में परिवर्तित करने की घोषणा के निम्नलिखित परिणाम होते हैं (धारा 81)

  • उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता के अध्याय 9 के अंतर्गत संक्रमणीय अधिकारवाले भूमिधर के ऊपर लगाएंगे गए प्रतिबंध समाप्त हो जाते हैं.
  • संबंधित भूमि भू राजस्व से मुक्त हो जाती है .यदि भूमि का आंशिक भाग गैर कृषि प्रयोजन हेतु घोषित किया गया है तो भूमि के संबंध में भू राजस्व प्रभाजित कर शेष कृषि भूमि का भू राजस्व निर्धारित किया जाता है.
  • संबंधित भूमि के संबंध में उत्तराधिकार के मामले संहिता की धारा 108से 114 के अंतर्गत तय नहीं होंगे. उत्तराधिकार के संबंध में भूमिधर के पर्सनल कानून लागू होते हैं. दूसरे शब्दों में उत्तराधिकार का निर्धारण राजस्व न्यायालय द्वारा न होकर सिविल न्यायालय द्वारा किया जाएगा.
  • संहिता की धारा 122 जिसमें किसी भूमिधर द्वारा भूमि के परित्याग किए जाने पर कलेक्टर द्वारा भूमि को कब्जामें लिए जाने का नियम है, निष्प्रभावी होजाता है ,अर्थात ऐसी भूमि को को कलेक्टर अपने कब्जे में नहीं ले सकते हैं.
  • ऐसी भमि का विनिमय( एक्सचेंज) संहिता की धारा 101 के अंतर्गत नहीं की जा सकती है.

गैरकृषि घोषित भूमि को रद्द किया जाना एवं उसका परिणाम (धारा 82)

यदि धारा 80के अंतर्गत गैरकृषि घोषित भूमि का प्रयोग कृषि से संबंधित गतिविधियों यथा, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन ,फूलों की खेती ,मधुमक्खी पालन ,या कुक्कुट पालन की जा रही है तो उप जिलाधिकारी स्वप्रेरणा से या आवेदन प्राप्त होने पर जांचों कर ऐसी घोषणा को रद्द कर सकता है .घोषणा को रद्द करने के उपरांत निम्नलिखित परिणाम होंगे

  • संक्रमणीय भूमिधरोंके ऊपर इस संहिताके अंतर्गत अंतरण और उत्तराधिकार (न्यागमन )के संबंध में लगाए गए प्रतिबंध पुनः प्रभावी हो जाएंगे.
  • भूमि पुनः भू राजस्व वसूल हेतु उपयुक्त हो जाएगा. परंतु ,जब तक भू राजस्व का पुनर्निर्धारण नहीं कर लिया जाता है तब तक धारा 80 केअंतर्गत घोषणा के पूर्व देय भू राजस्व के आधार पर ही भू राजस्व की वसूली की जाएगी.
  • यदि धारा 80 की घोषणा होने के पश्चात भूमि किसी संविदा या पट्टे केआधार पर भूमिधर से भिन्न व्यक्ति के कब्जा में आ जाता है तथा घोषणा के रद्द करने के उपरांत भी इस व्यक्तिका कब्जा बना रहता है और ऐसी संविदा या पट्टा की शर्तें इस संहिताके उपबंधों से असंगत (inconsistent )है तो ऐसी संविदा या पट्टा ऐसी असंगति की सीमा तक शून्य (void) हो जाएगा और भूमिधर के वाद के आधार पर कब्जाधारी व्यक्ति को बेदखल भी किया जा सकेगा.
  • उद्घोषणा के रद्द होने की तिथि से भूमि बधक(mortgage with possession) सिंपल मॉर्टगेज में परिवर्तित हो जाएगा और ऐसे सिंपल मॉर्टगेज पर ब्याज की दर नए सिरे से निर्धारित कीजाएगी. नियम 92 के अनुसार ऐसे सामान्य 4% प्रति वर्ष की दर से ब्याज वहन करेगा.

गैर कृषि घोषित भमि के संबंध में अंतरण व उत्तराधिकार के प्रश्न पर संहिता की धारा 83 एवं नियमावली 93 द्वारा उत्पन्न भ्रम की स्थिति क्या है?

उत्तरप्रदेश राजस्व संहिता की धारा 83 एवं उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता नियमावली के नियम 93 के सरसरी अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि धारा 80 केअंतर्गत कृषि भूमि को गैरकृषि भूमि में परिवर्तन करने के उपरांत भी अंतरण अथवा उत्तराधिकार के आधार पर नामांतरण आदेश नियमावली के अध्याय 5 में विहित रीति से पारित किया जाएगा.

उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 143 के अतर्गत कृषि भमि को गैरकृषि भूमि घोषित करने के उपरांत संबंधित जमीन” भूमि” की श्रेणी में नहीं मानी जाती थी और संबंधित खातेदार घोषित भूमि का भूमिधर नहीं रह जाता था.साथ ही ऐसी भूमि पर खातेदार के वैयक्तिक कानून लागू होते थे .ऐसीभूमि के अंतरण और उत्तराधिकार के संबंध में राजस्व न्यायालय द्वारा निर्णय नहीं लिया जाता था.

संहिता की धारा 81( ग )के अनुसार भी भूमिधर न्यागमन केविषय में वैयक्तिक विधि से नियंत्रित होगा जिसके वह अधीन है. अर्थात न्यागमन के संबंध में राजस्व संहिता प्रभावी नहीं होगा. धारा 81(ग) संहिताकी धारा 83 पठित नियम 93 के साथ संगत प्रतीत नहीं होता है.

संहिता की धारा 33 तथा नियम 29, 30, 31 ,32 में उत्तराधिकार तय करने के संबंध में कानून व प्रक्रिया निर्धारित किया गया है. इसमें भूमि शब्द का प्रयोग किया गया. संहिता की धारा 4( 14) भूमि को परिभाषित करता है जिसके अनुसार भूमि का तात्पर्य संहिता के अध्याय 7 और 8 और धारा 80, 81 और धारा 136 के सिवाय ऐसी भूमिसे है जो कृषि से संबंधित परियोजना के लिए धृत या अध्यासित हो .स्पष्ट है की भूमि के अंतर्गत धारा 80 केअंतर्गत घोषितगैर कृषि भूमि संहिता के अंतर्गत भूमि की श्रेणी से पृथक रखा गया है और उत्तराधिकार का निर्धारण धारा 33 व नियम 29 लगायत 32 में धारा 4 (14) के अंतर्गत परिभाषित भूमि का ही राजस्व न्यायालय द्वारा किया जाता है. पुनः न्यागमन के अतर्गत धारा 108 से 114 में उत्तराधिकार क्रम निर्धारित किए गएहैं जिसमें भूमि की जगह जोत शब्दका प्रयोग किया गया है .संहिता की धारा 4(12) में जोत को परिभाषित किया गया है जिसके अनुसार जोत का तत्पर्य एक भू खातेदारी ,एक पट्टे ,एक वचनबद्ध या अनुदान के अधीन रखे गए भूमि के किसी खंड से है .अर्थात जोत भी धारा 4(14) के अतर्गत भूमि मानी गई है .

अतः स्पष्ट है कि संहिता की धारा 83 एवं नियमावली के नियम 93 के आधार पर धारा 80 के अंतर्गत गैर कृषि घोषित भूमि का नियमावली के अध्याय 5 के अनुसार न्यागमन व अतरण के संबंध में नामांतरण आदेश पारित करने में भ्रम की स्थिति बनी हुई है. इस संबंध में माननीय विधायिका के द्वारा यथोचित संशोधन कर भ्रम का निराकरण किया जा सकता है.









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