घोषणात्मक वाद क्या है?
घोषणात्मक वाद उन मुकदमो को कहते हैं जहाँ वादी न्यायालय से अपनी कानूनी हैसियत की घोषणा करवाने की प्रार्थना करता है .न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित किए जाने पर उसकी हैसियत स्पष्ट हो जाती है और भ्रम का निवारण हो जाता है. यदि किसी व्यक्ति नाम राजस्व अभिलेख (खतौनी) में दर्ज नहीं है और वह किसी भूमि के संबंध में खातेदार होने का दावा करता है तो वह राजस्व संहिता के सुसंगत प्रावधान के अतर्गत उप जिलाधिकारी न्यायालय में घोषणात्मक वाद दायर कर सकता है तथा अभिलेख में अपना नाम शामिल करा सकता है.
किसी व्यक्ति/ खातेदार द्वारा घोषणात्मक वाद किस धारा के अंतर्गत दायर किया जा सकता है?
उत्तरप्रदेश राजस्व संहिता की धारा 144 के अतर्गत कोई व्यक्ति उपजिलाधिकारी न्यायालय में विवादित भूमि के संबंध में घोषणात्मक वाद दाखिल कर सकता है. धारा 144 के अनुसार,
(1) कोई व्यक्ति ,जो किसी जोत या उसके भाग का, चाहे अनन्य रूप से या किसी अन्य व्यक्ति के साथ संयुक्तरूप से भूमिधर या आसामी होने का दावा करें ,ऐसी जोत या उसके भाग में अपने अधिकार की घोषणा के लिए वाद ला सकता है.
(2 )उप धारा (1) के अधीन प्रत्येक वाद में ,जो –
(क) किसी भूमिधर द्वारा या उसकी ओर से संस्थित किया गया हो, राज्य और ग्रामपंचायत आवश्यक पक्षकार होंगे;
(ख )किसी असामी द्वारा या उसकी ओर से संस्थित किया गया हो ,भूमिधारक आवश्यक पक्षकार होगा.
ग्राम पंचायत द्वारा घोषणात्मक वाद राजस्व संहिता की किस धारा के अंतर्गत दायर किया जा सकता है?
किसी ग्रामपंचायत द्वारा राजस्वसंहिता की धारा 145 के अतर्गत घोषणात्मक वाद दायर किया जा सकता है .धारा 145 के अनुसार:
विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 की धारा 34 में अंतरविष्ट किसी बात के प्रतिकूल होते हुए भी ग्रामपंचायत किसी व्यक्ति के विरुद्ध, जो किसी भूमि में किसी अधिकार या हक का दावा करता है, ऐसी भूमि में ऐसे व्यक्ति के अधिकार की घोषणा के लिए, वाद संस्थित कर सकती है और न्यायालय अपने विवेक से ऐसे व्यक्ति के अधिकार की घोषणा कर सकता है और ग्रामपंचायत को ऐसे वाद में किसी अन्य राहत की मांग करने की आवश्यकता नहीं होगी.
उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 144 के अतर्गत घोषणात्मक वाद दाखिल करने के पूर्व किन तथ्यों को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है?
- धारा 144 के अतर्गत ग्रामपंचायत वाद दायर नहीं कर सकती है .इस धारा के अंतर्गत केवल भूमिधर तथा आसामी को अपने अधिकार की घोषणा हेतु वाद दायर करने का अधिकार है.
- घोषणात्मक वाद दायर करने के पूर्व सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 80 के अतर्गत दो माह की पूर्व नोटिस प्रतिवादी को दिया जाना आवश्यक है. मुकदमे का कोई भी पक्षकार मुकदमे के दौरान धारा 80 केअंतर्गत नोटिस से संबंधित आपत्ती उठा सकता है.
- कोई व्यक्ति जो स्वयं को विवादित भूमि का भूमिधर मानता है उसके द्वारा घोषणात्मक वाद दायर करने में सरकार और ग्रामपंचायत को पक्षकार बनाया जाना आवश्यक होगा। यदि घोषणात्मक वाद दायर करने वाला व्यक्ति ग्रामपंचायत का आसामी है तो ग्रामपंचायत तथा किसी भूमिधर का आसामी है तो उसे भूमिधर को पक्षकार अवश्य बनाना होगा. आसामी द्वारा दायर मुकदमे में राज्य सरकारको पक्षकार बनाया जाना आवश्यक नहीं है। यदि वादी स्वयं को सहखातेदार मानता है तो सभी खातेदारों को पक्षकार् बनाया जाना आवश्यक है।
- यदि वादी का विवादित भूमि पर कब्जा नहीं है तो घोषणात्मक वाद के माध्यम से अधिकारों की घोषणा के साथ- साथ कब्जा प्राप्त करने का भी दावा करना होगा।
- घोषणात्मक वाद में ही वादी विधिक बटवारा से सबंधित अनुतोष की मांग कर सकता है.
- यदि विवादित विक्रय पत्र/ दान पत्र आदि पूर्व से शून्य है तो वादी को सिविल कोर्ट से उसके निरस्तीकरण कराने की आवश्यकता नहीं है. वादी घोषणात्मक वाद दायर कर अनुतोष प्राप्त कर सकता है.
- वादी कई जोत के संबंध में समान पक्षकार होने की स्थिति में एक ही घोषणात्मक वाद दायर कर सकता है.
- वादी विभिन्न ग्रामों में स्थित विवादित भूमि के संबंध में सभी ग्राम पंचायत को पक्षकार बनाते हुए एक ही घोषणात्मक वाद दायर कर सकता है.
- यदि नामांतरण / संशोधन का वाद वादी के विरुद्ध निर्णित हुआ है तथा आयुक्त व मा. परिषद द्वारा निगरानी भी वादी के विरुद्ध पारित किया है तथा माननीय उच्च न्यायालय में रिट याचिका में भी वादी के पक्ष में अनुतोष प्रदान नहीं किया गया है ;ऐसी दशा में भी वादी धारा 144 के अंतर्गत घोषणात्मक वाद दायर कर अनुतोष प्राप्त कर सकता है.
- यदि निष्पादित विक्रय पत्र /दान पत्र /वसीयत इत्यादि शून्यकरणीय है तो जब तक सिविल न्यायालय द्वारा उक्त दस्तावेज को निरस्त नहीं कर दिया जाता है तब तक धारा 144 के अंतर्गत वाद दाखिल नहीं किया जा सकता है।
उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 145 के अतर्गत घोषणात्मक वाद दाखिल करने के पूर्व किन तथ्यों को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है?
- ग्राम पंचयत किसी व्यक्ति के विरुद्ध घोषणात्मक वाद दायर कर सकता है जो ग्रामपंचायत की भूमि में किसी अधिकार का दावा करता हो. न्यायालय द्वारा पारित आदेश ग्रामपंचायत के पक्ष में या विपक्ष में हो सकता है.
- धारा 145 के अंतर्गत दायर वाद में राज्य सरकार को पक्षकार बनाया जाना आवश्यक है.
घोषणात्मक वाद के संबध में उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 तथा उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 के प्रावधानों में क्या अंतर है?
उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम में घोषणात्मकवाद से संबंधित तीन प्रावधान थे – धारा 229 ,धारा 229 ख तथा 229 ग। धारा 229 केवल ग्राम सभा को घोषणात्मक वाद दायर करने की शक्ति प्रदान करता था. धारा 229 ग के अंतर्गत ग्राम सभा तथा भूमिधर दोनों को यह शक्ति मिली थी की वह अपने आसामी के अधिकारों के बाबत घोषणात्मक वाद दायर कर सकता था. राजस्व संहिता की धारा 145 जमींदारी विनाश अधिनियम की धारा 229 पर आधारित है. जमींदारी विनाश अधिनियम की धारा 229 ग को संहिता में शामिल नहीं किया गया है . जमींदारी विनाश अधिनियम की धारा 229 ख के आधार पर संहिता की धारा 144 निर्मित किया गया है.
क्या घोषणात्मक वाद सरसरी प्रक्रिया है?
घोषणात्मक वाद को सरसरी प्रक्रिया नहीं माना गया है बल्कि इसे नियमित वाद माना गया है, अर्थात जहां राजस्व संहिता के अन्य प्रावधान सरकारी प्रक्रिया के अंतर्गत निर्धारित होते हैं वही घोषणात्मक वाद नियमित वाद के रूप में निर्धारित किया जाता है. पक्षकारों द्वारा उठाए गए समस्त दावों एवं आपत्तियों के आधार पर न्यायालय द्वारा वाद बिंदु निर्मित किया जाता है तथा प्रत्येक वाद बिंदु के संबंध में पर्याप्त साक्ष्य के आधार पर प्रत्येक वाद बिंदु का निस्तारण किया जाता है.
यदि प्रतिवादी न्यायालय के क्षेत्राधिकार को इस आधार पर चुनौती देता है कि विवादित भूमि संहिता की धारा 4(14) के अतर्गत भूमि नहीं मानी जा सकती है अथवा वाद चकबंदी अधिनियम की धारा 49 से बाधित है तो ऐसी दशा में न्यायालय ऐसे वाद बिंदु को प्रारंभ में ही निर्णित कर वाद का निस्तारण कर सकता है.
घोषणात्मक वाद के लंबित रहते हुए क्या न्यायालय द्वारा व्यादेश जारी किया जा सकता है?
उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 146 के अतर्गत घोषणा घोषणात्मक वाद के लंबित रहते न्यायालय द्वारा व्यादेश का आदेश पारित किया जा सकता है.
राजस्व संहिता की धारा 146 के अनुसार यदि धारा 144 या 145 के अधीन किसी वाद के दौरान शपथ पत्र के द्वारा या अन्यथा यह सिद्ध हो जाता है-
(क ) की विवादित भूमि पर कोई संपत्ति, पेड़ या खड़ी फसल को वाद के किसी पक्षकार द्वारा बेकार करने, क्षति पहुंचाने या अन्यथा संक्रमित किए जाने का खतरा है; या
(ख) की वाद का कोई पक्षकार न्याय के उद्देश्य को समाप्त करने के उद्देश्य से उक्त संपत्ति, पेड़ या फसल को हटाने या बेच देने की धमकी देता है या इरादा रखता है,
तो न्यायालय अस्थाई व्यादेश आदेश दे सकता है और जहां आवश्यक हो रिसीवर भी नियुक्त कर सकता है.
अस्थायी निषेधाज्ञा का आदेश न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है .अस्थाई निषेधाज्ञा जारी करने के पूर्व सिविल प्रक्रिया सहिता 1908 के आदेश 39 नियम 3 का पालन अवश्य किया जाना चाहिए.
सर्वमान्य सिद्धांत के अनुसार निषेधाज्ञा के आदेश तभी पारित करना चाहिए जब निम्नलिखित शर्तें पूरी होती होती हो:
(क) मामला प्रथम दृष्टया आवेदक के पक्ष में हो,
(ख) सुविधा का संतुलन आवेदक के पक्ष में हो,
(ग निषेधाज्ञा पारित न होने पर आवेदक को अपूर्णनीय क्षति होने की संभावना हो.
संहिताकी धारा 146 के अंतर्गत पारित आदेश अंतरिम प्रकृति का होता है इस आदेश के विरुद्ध अपील दाखिल नहीं की जा सकतीहै परंतु निगरानी दाखिल की जा सकती है.
अंतरिम निषेधाज्ञा का उल्लेख कर यदि आवेदक विवादित संपत्ति का अंतरण करता है तो ऐसा अंतरण शून्य माना जाएगा.
यदि उत्तर प्रदेश राज्य संहिता की धारा 146 के अतर्गत न्यायालय द्वारा रिसीवर की नियुक्ति की गई है तो ऐसी नियुक्ति भी अंतरिम प्रकृति का होने के कारण अपील योग्य नहीं होता है परंतु रिसीवर नियुक्ति आदेश के विरुद्ध निगरानी दाखिल की जा सकती है.
घोषणात्मक वाद दाखिल करने की परिसीमा अवधि क्या है?
संहिता की धारा 144 एवं 145 के अंतर्गत घोषणात्मक वाद दाखिल करने की परिसीमा अवधि शून्य है .
घोषणात्मक वाद दाखिल करने की न्यायालय शुल्क क्या है ?
उत्तरप्रदेश राजस्व संहिता की धारा 144 के अतर्गत वाद दाखिल करने हेतु न्यायालय शुल्क ₹10 तथा धारा 145 के अंतर्गत न्यायालय शुल्क ₹5 निर्धारित किए गए हैं.
घोषणात्मक वाद (धारा 145 तथा 146) में उपजिलाधिकारी द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध अपील किस न्यायालय में दाखिल किया जा सकता है ?
घोषणात्मक वाद में उप जिलाधिकारी द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध प्रथम अपील आयुक्त न्यायालय तथा द्वितीय अपील माननीय परिषद न्यायालय में दाखिल किया जाएगा.