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पट्टा धारक का संक्रमणीय अधिकार क्या है?
पट्टा धारक का संक्रमणीय अधिकार (Transferable Rights of Patta Holder) वह अधिकार है जिसके तहत पट्टा धारक अपनी भूमि या संपत्ति को किसी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित कर सकता है। इस अधिकार के तहत पट्टा धारक भूमि की बिक्री, उपहार, या उत्तराधिकार के माध्यम से संपत्ति का स्वामित्व किसी अन्य व्यक्ति को सौंप सकता है। यह अधिकार पट्टा धारक को अपनी संपत्ति पर पूर्ण नियंत्रण और उसे किसी भी कानूनी तरीके से हस्तांतरित करने की स्वतंत्रता देता है, जिससे भूमि या संपत्ति की आर्थिक और सामाजिक स्थिरता सुनिश्चित होती है.
रामकुमार आदि बनाम बिहारी, वाद संख्या :-REV/3031/2014/सीतापुर में माननीय राजस्व परिषद ,लखनऊ द्वारा पट्टा धारक के संक्रमणीय अधिकार के संबंध में क्या आदेश दिया गया है?
रामकुमार आदि बनाम बिहारी, वाद संख्या :-REV/3031/2014/सीतापुर में माननीय राजस्व परिषद ,लखनऊ के समक्ष विचारणीय बिंदु यह था कि क्या कोई असंक्रमणीय भूमिधर के पट्टे की स्वीकृति के उपरांत निर्धारित अवधि पूर्ण हो जाने के उपरांत स्वतः संक्रमणीय भूमिधर के अधिकार प्राप्त कर लेगा अथवा यह अधिकार भूलेखो में उसका नाम संक्रमणीय भूमिधर के रूप में अंकित हो जाने के बाद ही उसे प्राप्त होंगे.
माननीय राजस्व परिषद द्वारा यह अवलोकन किया गया कि उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम के अनुसार निर्धारित अवधि 10 वर्ष तथा राजस्व संहिता 2006 से आच्छादित प्रकरणों में 5 वर्ष पूर्ण हो जाने के उपरांत असंक्रमणीय अधिकार वाले भूमिधर को संक्रमणीय भूमिधर के अधिकार प्राप्त हो जाएंगे .जहां तक भू अभिलेखों में संबंधित व्यक्ति का नाम संक्रमणीय भूमिधर के रूप में अंकित करते हुए भू अभिलेखों को दुरुस्त किए जाने का प्रश्न है यह दायित्व राजस्व विभाग के संबंधित अधिकारियों का है ना कि संबंधित व्यक्ति का.
यदि राजस्व अधिकारियों द्वारा अधिनियम के प्रावधानों ,नियमों तथा शासन एवं परिषद के निर्देशों के क्रम में पड़ताल के दौरान (जबकि खतौनी को पूरी ग्राम सभा के समक्ष सार्वजनिक रूप से पढ़कर सुनाया जाता है वह तदनुसार अभिलेखों के शुद्धिकरण /दुरुस्ती की कार्यवाही की जाती है), अपेक्षित कार्यवाही नहीं की गई है और समय से भू अभिलेखों को दुरुस्त नहीं किया गया है तो संबंधित राजस्व कर्मियों की इस शिथिलता हेतु खातेदार को दोषी नहीं माना जा सकता और ना ही उसे विधि द्वारा प्राप्त अधिकार से वंचित रखा जा सकता है.
अतः किन्ही कारणोंवश 10 वर्ष (राजस्व संहिता 2006 से अच्छादित प्रकरणों हेतु 5 वर्ष) की अवधि पूर्ण हो जाने के बाद भी संबंधित खातेदार का नाम राजस्व कर्मियों की शिथिलता के फल स्वरुप संक्रमणीय भूमिधर के रूप में अंकित नहीं हो पाया है तो यह निष्कर्ष निकाला जाना उचित नहीं है कि उसे संक्रमणीय भूमिधर के रूप में अपने भूमि को विक्रय करने अथवा उसकी वसीयत करने का अधिकार नहीं है.
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