क्यों जरूरी है भूमि की पैमाइश ?

भूमि की पैमाइश


भूमि की पैमाइश का महत्व

वर्तमान में भूमि संबंधी विवाद की संख्या बढ़ती जा रही है . भूमि पर कब्जा, बंटवारा एवं सीमांकन संबंधी विवाद की संख्या अत्यधिक हो गई है .किसी आराजी/ प्लॉट का नक्शे के अनुसार स्थल पर उसके सीमा संबंधी विवाद का निस्तारण पैमाइश के माध्यम से की जाती है.

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता2006 की धारा 24 तथा उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता नियमावली 2016के नियम 22

शासन द्वारा शासकीय सेवाओं का लाभ जन सामान्य को सुगम बनाए जाने हेतु ‘ इज ऑफ लिविंग’ के परिप्रेक्ष्य में भूमि की पैमाइश के संदर्भ में ऑनलाइन व्यवस्था लागू किया गया है. धारा 24 के अंतर्गत सीमा संबंधी विवाद का निपटारे हेतु ऑनलाइन प्रक्रिया हेतु आरसीसीएमएस पोर्टल पर http:/vaad.up.nic.in / पर ‘उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006की धारा 24 के अंतर्गत ऑनलाइन आवेदन’ माड्यूल लिंक उपलब्ध कराई गई है. ऑनलाइन पोर्टल पर लॉग इन कर 1000 रुपए की फीस जमा की जाती है ,तत्पश्चात उप जिलाधिकारी के न्यायालय में वाद दर्ज हो जाता है और उप जिलाधकारी /उप जिलाधिकारी (न्यायिक)के न्यायालय से वाद तहसीलदार को हस्तांतरित कर दिया जाता है .

तहसीलदार द्वारा वाद को राजस्व निरीक्षक को स्थानांतरित किया जाता है. राजस्व निरीक्षक तिथि एवं समय निर्धारित करते हैं तथा नोटिस निर्गत करते हैं. निर्धारित तिथि को पैमाइश पूर्ण होने के उपरांत राजस्व निरीक्षक संबंधित अभिलेख व रिपोर्ट उप जिलाधकारी न्यायालय में उपलब्ध कराता है. वाद अविवादित होने की दशा में उप जिलाधिकारी न्यायालय द्वारा पैमाइश का आदेश किया जाता है. यदि प्रकरण विवादित होता है तो सभी पक्षों को सुनने के उपरांत न्यायालय द्वारा आदेश पारित किया जाता है.

उप जिलाधिकारी के आदेश से व्यथित व्यक्ति मंडलायुक्त के समक्ष अपील कर सकता है ऐसी अपील विवादित आदेश की तिथि से 30 दिनों के भीतर दायर की जा सकती है . मंडलायुक्त के आदेश को अंतिम नहीं माना गया है .यदि कोई व्यक्ति मंडलायुक्त के आदेश से व्यथित है तो वह राजस्व परिषद में निगरानी दायर कर सकता है. परिषद के आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में याचिका भी दायर की जा सकती है तथा धारा 144 के अंतर्गत घोषणात्मक वाद भी दायर किया जा सकता है.

राजस्व संहिता की धारा 24 के अनुसार सीमा संबंधी विवाद का विनिश्चय उप जिलाधिकारी स्वप्रेरणा से भी कर सकते हैं तथा हितबद्ध व्यक्ति के आवेदन पर भी कर सकते हैं .यदि विवाद का निस्तारण नक्शे के आधार पर किया जाना संभव नहीं है तो सीमा का निर्धारण वास्तविक कब्जे के आधार पर किया जाएगा. धारा 24 (1) के अंतर्गत जांच के दौरान जिलाधिकारी का यह समाधान ना हो सके की विवादित भूमि पर किस व्यक्ति का कब्जा है तो वह संक्षिप्त जांच द्वारा यह तय करेंगे कि विवादित भूमि का सर्वाधिक हकदार कौन व्यक्ति है और ऐसे व्यक्ति को कब्जा दिलाया जायेगा.

यदि उपरोक्त जांच के दौरान उप जिलाधकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचता है की विधि पूर्ण अध्यासी को सदोष बेदखल करके कब्जा प्राप्त किया गया है तो वह इस प्रकार बेदखल किए गए व्यक्ति को कब्जा दिलाएगा और इसके लिए आवश्यक बल का प्रयोग कर सकेगा. धारा 24 के अंतर्गत समस्त कार्रवाई 3 माह में पूरी की जाएगी. यदि तयसीमा में कार्रवाई पूरी नहीं की जाती है तो नियम 195 के प्रावधान लागू हो सकते हैं अर्थात ‘उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (अनुशासन और अपील) नियमावली ‘1999 के अंतर्गत कार्रवाई की जा सकती है.

पैमाइश के प्रचलित तरीका एवं अनिवार्य शर्तें

उत्तर प्रदेश में पैमाइश का सबसे लोकप्रिय तरीका जरीब (chain)के माध्यम से है. जरीब खींचने के साथ-साथ जरीब खींचने में खेतों की मेड़ों के कटान फील्ड बुक में दर्ज करते रहना चाहिए .इसे यादाश्त पर नहीं छोड़ना चाहिए . ऊंची -नीची भूमि की पैमाइश में विशेष सावधानी रखा जाना आवश्यक है ,यदि ढलान पर जरीब चलाई जाती है तो त्रुटिपूर्ण लंबाई ज्ञात होगी इसलिए जरीब को सीने की ऊंचाई तक रखकर सीधा रखना आवश्यक है और कंकर आदि गिरा कर नाप लिया जाना चाहिए.

पैमाइशकर्ता को पैमाइश करने से पहले बंदोबस्ती नक्शा से मौके का मिलान करके यह जानकारी प्राप्त कर लेना चाहिए कि खेत का आकार नक्शा में बने आकार से साम्यता रखता है या नहीं? इसमें 5 कड़ियों तक की त्रुटि क्षम्य होती है.

मापन कार्य आरंभ करने के लिए फिक्स्ड प्वाइंट अथवा स्थिर बिंदु की आवश्यकता होती है .त्रिभुज के सिद्धांत के अंतर्गत दो बिंदुओं को मिलाने वाली रेखा को आधार मानकर तीसरा बिंदु ज्ञात किया जाता है. इसी कारण बंदोबस्ती नक्शा के उद्धरण में कम से कम दो सिहद्धा (ट्राई जंक्शन मार्क्स ) को आवश्यक माना जाता है. पक्का तालाब नक्शा में बना है तो इसका प्रत्येक कोना फिक्स्ड प्वाइंट मान लिया जाना चाहिए .

इसी प्रकार पक्का कुआं के केंद्र बिंदु को फिक्स्ड पॉइंट माना जा सकता है .पक्की सड़क तथा रेलवे लाइन की सीमा का प्रत्येक बिंदु फिक्स्ड प्वाइंट माना जा सकता है .यहां यह ध्यान रखने योग्य है कि फिक्स्ड पॉइंट विवादित गाटा से अधिक दूरी पर ना हो अन्यथा पैमाईश का परिणाम संतोषप्रद नहीं होगा .फिक्स्ड पॉइंट का दिशा स्थान अर्थात डायरेक्शन किस दिशा में होना चाहिए? यह भी अत्यंत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है. इस संबंध में साधारण नियम यह है कि विवादित स्थल की दिशा में ही फिक्स्ड प्वाइंट होनी चाहिए.

पैमाइश के वक्त निम्नलिखित प्रकार की त्रुटियां होने की संभावना रहती है

a.. जरीबी लाइन की सिध (एलाइनमेंट) से हटकर जरीब चलाना,

b.. आगे और पीछे जरीब खींचने वाले का जरीब को ढीला पकड़ना,

c..जरीब में यदि गांठ पड़ जाए तो उसे ना खोलना,

d..जरीब की कड़ियों की गलत गणना करना,

e..ऊंची नीची भूमि की माप में होरिजेंटल लेवल की माप पृथक से ना करना,

f.. पैमाइश से पूर्व जरीब की लंबाई की जांच ना करना,

g.. फील्ड बुक में तत्काल ही माप दर्ज न करना.

आबादी स्थल की पैमाइश

आबादी स्थलों से संबंधित विवाद का निस्तारण दीवानी न्यायालय के क्षेत्राधिकार में है. इसके लिए सिविल प्रक्रिया संहिता के आर्डर XXVI के अंतर्गत कमीशन जारी किए जाते हैं.

पैमाइश कब की जा सकती है?

यद्यपि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 तथा उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता नियमावली 2016 में पैमाइश कब की जा सकती है इस संबंध में स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं दिए गए हैं. साथ ही पैमाइश के मुकदमे का निस्तारण 3 माह में किए जाने का विधिक प्रावधान किया गया है . इससे स्पष्ट है कि पैमाइश पूरे वर्ष किए जा सकते हैं. परंतु ,भूलेख नियमावली के अनुसार पैमाइश के लिए रबी की फसल बोने के पूर्व तथा रबी की फसल कटने के पश्चात अनुकूल समय होता है. दूसरे शब्दों में, पैमाइश का उचित समय सितंबर अक्टूबर तथा अप्रैल से जून होता है. इस समय मापने का कार्य सुगम होता है क्योंकि खड़ी फसलें बाधक नहीं होती हैं.









Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (PM-RKVY) और कृषोन्नति योजना (KY) को दी मंजूरी उत्तर प्रदेश में वानिकी नव वर्ष का शुभारम्भ मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना से उत्तर प्रदेश के युवाओं को मिलेगा 10 लाख तक ब्याजमुक्त ऋण Paryatan Mitra and Paryatan Didi