राजस्व न्यायालय को जनहित याचिका सुनने का क्षेत्राधिकार

राजस्व न्यायालय


राजस्व न्यायालय को जनहित याचिका सुनने का क्षेत्राधिकार है अथवा नहीं?

सुधीर कुमार आदि बनाम भानु केहर के मामले में माननीय राजस्व परिषद के समक्ष यह प्रश्न विचार हेतु प्रस्तुत हुआ कि क्या राजस्व न्यायालय का जनहित याचिका अथवा public interest litigation (PIL) सुनने का क्षेत्राधिकार है अथवा नहीं? साथ ही इस प्रकरण में मा. परिषद के समक्ष यह भी विचारणीय प्रश्न था कि क्या किसी असंबद्ध व्यक्ति द्वारा किसी ऐसे प्रकरण में निगरानी दायर की जा सकती है जिसमें वह व्यक्ति ना कभी पक्षकार रहा हो और ना ही प्रभावित व्यक्ति की श्रेणी में आता हो?.

निगरानी वाद सुधीर कुमार आदि बनाम भानु केहर में माननीय परिषद द्वारा निम्नलिखित विधि व्यवस्था दी गई:

1.. जनहित याचिका अथवा public interest litigation( PIL) को सुनने का क्षेत्राधिकार माननीय उच्च न्यायालय एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय की भांति संविधान के अनुच्छेद 226 तथा अनुच्छेद 32 के अंतर्गत राजस्व न्यायालय को प्राप्त नहीं है.

यद्यपि राजस्व कानूनों में कई प्रकार के प्रकरणों में जहां शासकीय अथवा ग्राम सभा की भूमि निहित होती है प्रशासनिक स्तर पर शिकायत प्राप्त होने पर अथवा निरीक्षण के दौरान स्वतः संज्ञान में आने पर अपेक्षित विधिक कार्यवाही किए जाने की व्यवस्था दी गई है .परंतु, विधिक वादों में इस प्रकार की कार्यवाही सरकार अथवा ग्राम सभा अथवा संबंधित निकाय आदि की ओर से ही की जानी वांछनीय है.

ऐसे प्रकरणों में किसी व्यक्ति विशेष द्वारा सरकार अथवा ग्राम सभा आदि के सहयोग एवं समर्थन हेतु यथासंभव साक्ष्य आदि तो उपलब्ध कराए जा सकते हैं परंतु स्वयं पक्षकार बनकर विधिक कार्यवाही किया जाना अथवा वाद दायर किया जाना विधिक दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता, जब तक की उसके द्वारा अपने को प्रकरण में हितबद्ध पक्षकार के रूप में स्थापित ना किया जाए.

2.. राजस्व न्यायालयों में वाद दायर किए जाते समय अथवा यथा स्थिति आपत्ति प्रस्तुत किए जाते समय प्रारंभिक स्तर पर ही इस बिंदु का परीक्षण कर लिया जाए कि वाद दायर करने वाला अथवा आपत्ती प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति वास्तव में प्रभावित/ हितबद्ध पक्षकार है अथवा नहीं? तथा वाद में आपत्ति प्रस्तुत करने हेतु उसका locus standi है अथवा नहीं.









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