राजस्व न्यायालयों में मौखिक बहस की अनिवार्यता
यदि कोई पक्षकार जानबूझकर विलंब करने के उद्देश्य से पर्याप्त अवसर दिए जाने के बाद भी किसी राजस्व न्यायालय में मौखिक बहस नहीं करता है.परंतु उसकी लिखित आपत्ति/ वाद पत्र/ प्रत्युत्तर /कथन /अभिकथन प्राप्त हो चुका है तो राजस्व न्यायालयों से अपेक्षित है कि ऐसे प्रकरणों में मौखिक बहस के अवसर को समाप्त करते हुए पत्रावली पर उपलब्ध लिखित वाद पत्र/ आपत्ति/ प्रत्युत्तर/ कथन/ अभिकथन का संज्ञान लेते हुए गुण दोष के आधार पर आदेश पारित करें.
ऐसे गुण दोष के आधार पर पारित आदेश को एकपक्षीय नहीं माना जाएगा व इस आदेश के विरुद्ध न तो पुनर्स्थापन पोषणीय/ग्राह्य होगा और न ही ऐसे आदेश का उसी अधिकारी अथवा उसके उत्तराधिकारी/ समकक्ष अधिकारी( राजस्व परिषद से निम्न न्यायालय) द्वारा पुनर्विलोकन किया जा सकेगा.
रमेश चंद्र आदि बनाम राकेश कुमार वाद संख्या : REV/2384/2015/उन्नाव में माननीय परिषद द्वारा दी गई अन्य व्यवस्थाएं:
उपरोक्त निर्णय माननीय राजस्व परिषद लखनऊ द्वारा रमेश चंद्र आदि बनाम राकेश कुमार वाद संख्या:REV/2384/2015/उन्नाव में दिया गया .उक्त वाद में माननीय परिषद द्वारा निम्नलिखित व्यवस्थाएं दी गई है:
1.. माननीय परिषद द्वारा यह मत व्यक्त किया गया कि ऐसे प्रकरण संज्ञान में आए हैं जहां राजस्व न्यायालय द्वारा एक बार गुण दोष के आधार पर आदेश पारित करने के उपरांत स्वयं अपने आदेश को वापस ले लिया जाता है अथवा उसे पुनर्विलोकन हेतु स्वीकार कर लिया जाता है.
माननीय परिषद द्वारा यह स्पष्ट किया गया कि राजस्व अधिनियम में कहीं भी सक्षम स्तर से पारित आदेश को वापस लेने ( रिकॉल) का प्रावधान नहीं है. जहां तक आदेश का पुनर्विलोकन किए जाने का प्रश्न है उत्तर प्रदेश भू राजस्व अधिनियम की धारा 220/ उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 211 के अंतर्गत पुनर्विलोकन( रिव्यू )का अधिकार केवल राजस्व परिषद में ही निहित है. अतः अधीनस्थ राजस्व न्यायालय द्वारा अंतरिम आदेश में संशोधन दूसरे पक्ष को समुचित आपत्ति का अवसर देने के उपरांत तो किया जा सकता है परंतु गुण दोष पर पारित अंतिम आदेश को न तो वापस (रिकॉल) किया जा सकता है और न ही स्वयं उसी स्तर पर पुनर्विलोकित (रिव्यू) किया जा सकता है.
2…पुनर्स्थापना ( रेस्टोरेशन )के प्रार्थना पत्र पर विचार करने से पूर्व सर्वप्रथम यह देखा जाना आवश्यक है कि पुनर्स्थापना ( रेस्टोरेशन) लिमिटेशन अवधि के अंदर दिया गया है अथवा उसके बाद. यदि पुनर्स्थापना लिमिटेशन अवधि निकल जाने के बाद दिया गया है तो पुनर्स्थापना प्रार्थना पत्र पर विचारण से पूर्व संबंधित पक्षकारों को यथास्थिति आपत्ति हेतु अवसर प्रदान कर और सुनकर सर्वप्रथम लिमिटेशन प्रार्थना पत्र का निस्तारण किया जाना चाहिए. यदि संबंधित पीठासीन अधिकारी प्रकरण में विलम्ब के कारणों से संतुष्ट है तो उनका उल्लेख करते हुए लिमिटेशन प्रार्थना पत्र का निस्तारण करने के बाद ही पुनर्स्थापना प्रार्थना पत्र पर विचार किया जाना चाहिए.